एक की आबरू का मोल है।
एक की आबरू का मोल है दूसरे की क्यों अनमोल है।
ये तो सरासर तुम्हारा गलत कौल है।।1।।
बेताब है मर जाने को इसमे खता ना कोई शम्मा की है।
परवाना तो देखो खुद ही मदहोश है।।2।।
अब कोई क्या लड़ेगा उनकी मोहब्बत से इस जमानें में।
उनके दिलों में इश्क ए सरफरोश है।।3।।
मदद करना हर किसी की यूँ दिल से सारी ही दुनियां में।
ये आदत तुम्हारी काबिल ए गौर है।।4।।
इस तरह नज़रानें में अपनी खुशियां को किसी को देना।
हमारी ज़िन्दगी का पुराना शौक है।।5।।
दुश्मनों से लड़कर शहीद हो गए है देश की सरहद पर।
नाम गुंजा उनका ही चारों ओर है।।6।।
आह ना निकली गरीब के जनाजे पर किसी भी दिल से।
अमीर के मौत पर कितना शोर है।।7।।
बाहर से आने वाले लोगो पर यहां लगी जब पाबन्दी है।
तो चोरी में घर का ही कोई चोर है।।8।।
लिखा लो उसकी पूरी की पूरी जायदाद अपने नाम पर।
वो अमीर रहता हमेशा मदहोश है।।9।।
जरा सी परेशानी क्या आयी जिंदगीं में तुम तो डर गए।
इतने भर से कम तुम्हारा जोश है।।10।।
लोग भी जाने दौलत से कौन कौन सी खुशी खरीदते है।
सुकूँ के लिए तो बस माँ की गोद है।।11।।
आज तो जुल्म कर लो तुम, पर महशर में क्या करोगे।
जहां चलता ना किसी का भी जोर है।।12।।
उसे ना ले जाना बिखरी हुई लाशों में शिनाख्त के लिए।
वह तो दिल का बहुत ही कमजोर है।।13।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ