एक किताब
लाखों करोड़ों किताबों मे
सोचता हूं इक दिन
पढ़ लेगा कोई
एक किताब मेरी भी ।
छोड़ चला जाऊंगा मै
दुनिया को इक दिन
रह जायेगी यादों मे
एक कहानी मेरी भी ।
कोलाहल के जीवन मे
नामुमकिन है इक दिन
सुन लेगा कोई
एक आवाज़ मेरी भी ।
जिन राहों पे चला था मै
ढूंढेगा कोई शख्स इक दिन
शब्दों के पदचिन्हों मे
एक लकीर मेरी भी ।।
राज विग 06.03.2020.