एक किताब सी हूँ मैं
दबे हो सीने में मेरे,
प्यार में समर्पित।
शब्दों की माला बन,
वाक्यों को अर्पित।
अपने अस्तित्व से ही ,
तूने दिया हमें बुन।
एक किताब सी मैं,
और एक कहानी से तुम।।
जब मैं खुलूँ तब,
शब्द तेरे मुस्काय।
तेरी कहानी पढ़कर ही,
वाह वाह मेरी हो जाय।
सावन की घटा हूँ मैं ,
तुझमें है बादलों सी धुन,
एक किताब सी मैं,
और एक कहानी से तुम।।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर, उ.प्र.
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