एक किताब लिखती हूँ।
चल जिन्दगी तुम पर मैं आज
एक किताब लिखती हूँ ।
क्या पाया क्या खोया मैंने
आज उसका हिसाब-किताब
करती हूँ।
अपने बीते हुए गम का
मैं आज आँसु लिखती हूँ ।
अपने खुशी के पल का
मै आज हँसी गिनती हूँ।
चल जिन्दगी तेरे साथ बैठकर
खुशी और गम का
हिसाब-किताब लगाती हूँ।
कितने सपने देखें मैने
कितना उसमें पुरा हुआ,
कितने टुट गए आँखों मे
आज उन सपनों का
मै हिसाब-किताब बैठाती हूँ।
कितने प्रश्न मेरे प्रशन ही रह गए,
कितने प्रशनों का मिला जवाब
तेरे संग बैठकर मै आज
उसका हिसाब-किताब लगाती हूँ।
कितने अपनों ने साथ निभाया
कितनें ने मुझको ठुकराया।
आज तुम्हें मैं अपनी वह
जज्बात दिखाती हूँ ।
चल जिन्दगी फिर से आज
इनका हिसाब-किताब लगाती हूँ ।
जीवन में आए कितने मेरे खुशी के पल
कितने दर्द के पल ने मुझको है तड़पाया।
चल जिन्दगी उन रोते- हँसते पलों का
आज फिर से हिसाब-किताब लगाती हूँ।
कितने लोगो ने राहों में मेरे फूल बिछाएँ थे।
कितनो ने राहों में काँटा बोकर
मेरे पैरो को जख्मी कर डाला था।
चल जिन्दगी एक बार फिर से
उस सबका हिसाब-किताब लगाती हूँ।
मेरे जीवन में बदलते हुए
इन पल-पल हलातों का
एक हिसाब-किताब लगाती हूँ।
तुमने क्या दिया जिन्दगी मुझे
उस पर एक नजर डालती हूँ।
चल जिन्दगी तुम पर आज
एक किताब लिखती है।
~अनामिका