एक कबूतर
छ्त पर बैठी
एक कबूतर दाना खाती
सहमी सी थी
वह भूखी थी डरी हुई सी
ऊपर नीचे सिर
करती पर मरी हुई सी
जठराग्नि भारी
यौवन पर यह दिखलाती
पास पड़ी थी वहीं
एक मरी हुई तितली
बहशी के जैसे हाथों से
लगती मसली
रंग रूप पर
अपने रहती थी मदमाती।
एक कली जो
गमले में थी झुकी हुई थी
मुरझाई थी
पत्ते पर ही रूकी हुई थी
कोई उसको
तोड़े न छिपती डर जाती