एक ऐसा भी नेता
“मुनमुन लाल सोच रहा हूँ कि आज मै अपना चित्र बनवा लूँ, आने वाले चुनाव में काम आएगी।” जयंति लाल जी मुँह एक ओर पान दबाए बड़े ही अदब के साथ बोले। “हाँ साहब बोर्ड पर भी फोटो ऐसी होनी चाहिए न, कि देखने वाला बस आप ही को वोट दे दे।” मुनमुन लाल नें जयंति लाल के पैर दबाते हुए बोला।
”सही कहा मुनमुन लाल तुमने, तो एक काम करो बुलाओ एक बेहतरीन चित्रकार को! हम आज ही चित्र बनवाएँगे।”
“जी साहब शाम तक आपकी खिदमत में हाजिर हो जाएगा, चलता हूँ साहब एक चित्रकार की तलाश जो करनी है।” इतना कहकर मुनमुन लाल उठकर जाने लगा तो पीछे से जयंति लाल नें टोकते हुए कहा “रूको मुनमुन लाल! हमारा दिल नही कर रहा यहाँ अकेले दिन गुजारने को, एक काम करता हूँ मै भी तुम्हारे साथ हो लेता हूँ। जनता से भी मिल लूँगा उनकी बातें भी सुन लूँगा और चित्रकारी भी वहीं करवा लूँगा।”
“ठीक है साहब, चलिए आप” मुनमुन लाल नें सिर झुकाए हुए कहा। और फिर दोनों निकल पड़े चित्रकार की तलाश में। फिर रास्ते में ट्रेफिक लाइट की लाल बत्ती जल गयी और जयंति लाल जी नें गाड़ी रोकने को कहा। कि तभी मुनमुन लाल बोल पड़े “साहब आपको ट्रेफिक सिग्नल पर रूकने की क्या जरूरत! आप तो देश के कर्ता धर्ता हैं, ये सब नियम तो बेचारी और मामूली जनता के लिए है। आपके लिए नहीं।” “नही मुनमुन लाल ये जनता हमसे नहीं! हम जनता से हैं। और ये कोई बेचारी और मामूली नहीं है। बहुत ही कीमती हैं, ये क्योंकि इनके कारण ही हम आज यहाँ इस पोजिशन पर पहुँचे हैं। और इस नीली लाल बत्ती वाली गाड़ी में घूम रहे हैं। ये जनता का प्रेम ही तो है जो हमें अपना अमूल्य वोट और कीमती समय देकर इस देश की सत्ता की बागडोर हमारे हाथ में थमाते है। इसीलिए जैसे जनता रहती है वैसे ही हम भी रहेंगे।”
दोनों सिग्नल के हरे होने का इंतजार कर रहे थे। कि तभी…. “साहब बनवा लो न एक पेंटिंग हम बहुत अच्छी पेंटिंग बनाते हैं। चार दिन से भूखे हैं, कुछ खाने को मिल जाएगा साहब” जयंति लाल ये आवाज सुनकर इधर उधर झाँकने लगते हैं कि तभी उनकी नजर सामने खड़ी गाड़ी पर पड़ती है। जिसके बाहर शीशे पर खड़े दो विक्लांग बच्चे गाड़ी वाले से पेंटिंग बनवाने को कह रहे थे। एक बच्चे के हाथ नहीं थे तो दूसरे के एक पैर और हाथ दोनों ही नही थे। सहसा जयंति लाल जी गाड़ी पर से उतर पड़े और उन दो बच्चों के पीछे खड़े होकर बोले ” मेरा चित्र बनाओगे बच्चों”
दोनों बच्चे पीछे मुड़े तो उनके चेहरे पर एक अलग ही खुशी थी। वो उन बच्चों को लेकर एक शांत जगह पर अपना चित्र बनवाने लगे। दोनों ही बच्चे बड़े लगन के साथ एक ही पेंटिंग में साथ मिलकर उनकी चित्रकारी कर रहे थे। एक अपने पैरों से चित्र बना रहा था तो दूसरा अपने हाथों के इस्तेमाल से उस चित्र को सुंदर आकार प्रदान कर रहा था। दोनों के साथ में किये गये चित्रकारी से जयंति लाल जी का चित्र कम से कम समय में पूरा हो गया। और जब जयंति लाल जी नें अपना चित्र देखा तो उनकी आँखों से सहसा अश्रु धारा बह निकली। चित्र, चित्र लग ही नही रहा था। उस चित्र को देखकर ऐसा लग रहा था जैसा हु ब हू खुद सामने जयंति लाल खड़े हों। उन्होने उन बच्चों को अपने हृदय से लगा लिया और पेट भर खाना भी खिलाया।