एक उम्र थी मेरी भी ।
आज बूढ़ा दिखता हूंँ तो क्या हुआ ,
मैं भी कभी नवयुवकों-सा जवान था,
जोश और उत्सुकता से भरा हुआ इंसान था,
शारीरिक रूप से एक पहलवान था ।
एक उम्र थी ………..।।१।
जब मेरी चमड़ी चमकदार थी ,
दोनों नेत्रों में तेज धार थी ,
होती लंबी याददाश्त थी ,
जरा-जरा सी बातें नहीं बर्दाश्त थी ।
एक उम्र थी ………..।।२।
दिन-दिन भर कार्य किया करता था,
रातों में भी सफर किया करता था,
अपने बल पर किसी से नहीं डरता था,
बड़े-बड़े बोझा उठाकर पटकता था ।
एक उम्र थी ………..।।३।
कमर यूँ कभी नहीं झुकी थी,
यूँ ही पैर कभी नहीं काँपते थे,
मीलों तक दौड़ कर चला जाता था,
ढे़र सारा भोजन भी पचाता था ।
एक उम्र थी ………..।।४।
वेशभूषा का भी बहुत शौक था ,
घोड़ा-गाड़ी का भी एक मय था ,
साथ में बैठा कर घुमाने का भी नहीं भय था ,
आंँख से आंँख लड़ाने का भी क्षण था ।
एक उम्र थी ………..।।५।
✍🏼✍🏼
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर ।