एक उम्र के बाद!
एक उम्र के बाद,
आदमी में,
बदलने लगते हैं ,
विचार,
आदतें,
तौर-तरीके,
उम्मीदें,
और,
कार्य व्यवहार!
एक उम्र के बाद,
उम्र की,
एक निर्धारित उम्र होती है,
यानी समय सीमा,
शैशव काल,
बाल काल,
तरुण,युवा,यौवन,
और,
नौजवानी से परिपूर्ण,
जिसमें ,
सोचने समझने से लेकर
पहचान बनाने तक,
अलग अलग अनुभव,
जानने,सीखने का,
मिलता है अवसर,
और स्वंय को,
उसके अनुरूप,
ढालने का सुनहरा अवसर!
समय चक्र चलता रहता है,
फिर आ जाती है प्रौढ़ावस्था,
इसे जीने में भी,
अपने अलग ही अनुभव हैं,
सारे जीवन भर की जिम्मेदारी,
इसी में निर्वहन करने की,
ललक लालसा रहती है,
जीवन की कितनी जिम्मेदारियां,
निभाई गई हैं,
कितनी शेष रह गई है,
यह आत्मावलोकन करने का अवसर,
तब आता है जब,
हम प्रवेश कर रहे होते हैं,
वृद्धावस्था में!
वृद्धावस्था जब हमें,
मान लिया जाता है,
बीते हुए समय का,
चूका हुआ,
चाहे हमने,
अपने जमाने में,
किया हो खूब,
संघर्ष,
जीवन जीने के लिए,
परिवार के पालन-पोषण के लिए,
सामाजिक सरोकारों को,
निभाने के लिए,
उसका मुल्याकंन,
अब कौन करता है,
कौन है जो,
सोचता है,
कैसे जिया होगा,
इन्होंने,
अपने जीवन को,
विपरीत परिस्थितियों में,
किसे समय है,
इस पर विचार करने का,
ऐसे में,
उसके प्रति,
क्या नजरिया रखें,
यह उसके,
उपयोग और उपयोगी होने पर निर्भर करता है!
हर उम्र के बाद,
एक नये अनुभव के साथ,
नई नवेली जिंदगी की ओर,
बढ़ाते चलते हैं हम कदम,
कदम दर कदम उठाते हुए,
धरते हैं कदम,
नये स्वपन लोक में,
और पाते हैं एक नया अनुभव!
हर एक उम्र के बाद,
बढ़ता हर कदम,
आशंकाओं से भरा पड़ा रहता,
किन्तु बिना संकोच,
बढ़ता रहता है,
आदमी,
अगले कदम की ओर!