एक उम्मीद छोटी सी…
रुक गयी हसी, हसते चेहरे की
लगाई डाँट जब, प्राणबल्लभ ने
जा बैठा फिर अन्तःमन,
सिमटकर एक कोने में,
था विचरता जो कभी, स्वछन्द भाव से।
सूख सी गयी गंगा,
बुझे दीप, उम्मीद के
मारा जब प्राणप्रिये ने
फिर भी जीवित हैं
रोज की तरह आज भी मरने के लिए नहीं
बल्कि देने के लिये,
एक नया जीवन उसे
खेल रहा है जो उसकी गोंद में।