एक उम्मीद किरन की वो यहाँ ले आए
एक उम्मीद किरन की वो यहाँ ले आए
रात के बाद जो सूरज के उजाले आए
सन्दली छाँव थी उस धूप में पेड़ों की जहाँ
वो थकन थी कि वहाँ पाँव मुझे ले आए
कोई ज़ख़्मों के लिए लाया ही नहीं मरहम तक
जितने आए थे फ़क़त देखने वाले आए
फिर भी ज़ारी ही रहा अपना सफ़र मंज़िल तक
जबकि कितने ही मेरे पाँवों में छाले आए
हादसा जो भी हुआ जबकि बताया था वही
सच नहीं उनमें था जो छप के रिसाले आए
इश्क़ के अब्र तो छाए थे हमारे दिल पर
उस पे फिर आप भी ज़ुल्फ़ों की घटा ले आए
आज इज़हारे मोहब्बत का यकीं था हमको
आप नज़रों में मगर फिर से हया ले आए
सामने आप थे हम थे या कभी कुछ भी नहीं
बारहा इश्क़ में मंज़र ये निराले आए
लोग ‘आनन्द’ उठा लाए बहुत से सामाँ
हम मगर साथ में बस माँ की दुआ ले आए
– डॉ आनन्द किशोर