एक आह (मुक्तक )
जिंदगी गर खुशनुमा होती ,
तो मौत का ख्याल क्यों करते ?
क्यों हर वक्त रह रह कर ,
दामां को अश्कों से अपने भिगोते ?
और ग़मों का तूफ़ान है सीने में ,
इसीलिए आहें सदा है भरा करते .
हमें काश तुमसे मुहोबत न होती ,
दिल को तन्हाई में रोने की आदत न होती.
ना आता तेरा नाम भी कभी जुबां पर ,
तो बेबसी मैं तुम्हें पुकारने की ज़रूरत न होती.
अपनी नाकाम तमन्नाओं के साथ,
लो रुखसत होते हैं हम तेरे जहान से ,
अब तुम्हें कोई मुहोबत के लिए मजबूर ना करेगा ,
तुमको आज़ाद कर देते हैं अपनी पनाह से.