एक आशिक की संवेदना
बेनज़ीर है ये दिल मेरा,
तुम ना खेलो अब इससे,
हूँ हो चुका परेशान खिलौना बनते-बनते |
मोहब्बत था तुमसे किया मैंने,
पर तुमने तो दगा ही दिया मुझे,
जितनी नज़दीकियां मैंने बढ़ाई
उतने ही दूर तुम चले गए,
अब ढूंढता फिरूँ तूझे इधर उधर,
मिले ना तू मुझे कहीं मगर,
जबसे बिछड़ा हूँ तूझसे,
रहने लगा हूँ दूर सबसे |
जब साथ थे तुम
तो दुनिया रंगीन था,
जब से हुए तुम दूर मुझसे,
सब कुछ मलिन-सा लगने लगा है |
दिल में सिर्फ एक दर्द रह गया है,
तेरी यादें आती है, जाती ही नहीं……
मैं आवारा आशिक
उन यादों में ही खोया रहता हूँ…..