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6 Nov 2021 · 1 min read

एक आरज़ू दिल में बसी है…

एक आरज़ू दिल में बसी है…

फ़िज़ा भी वही है, शमा भी वही है,
वही शम-ए-महफ़िल,सजाई गई है।
वही जुस्तजू है, वहीं दिल की धड़कन,
कातिल निगाहें बिछाई गई है ।

थिरकते कदम पे घुंघरू और पायल,
नशा हल्का-हल्का बिखरने लगा है।
पर मन परेशान है उन उलझनों में,
जो दिल की तन्हाइयों में समाई हुई है।

जो नजरों में दिखता सच्चा है,
वो फिर दिल का झूठा लगता है।
उलझनें भ्रमजाल सा गहरा,
है तो झूठा ,पर सच्चा लगता है।

प्रेम वियोग में भटकता तन-मन,
जमाने को देखकर,सिहर सा गया है।
प्रेम शाश्वत आधार प्रभु का ,
महफ़िलों में रमता कहाँ है।

एक आरज़ू दिल में बसी है,
क्षणभर के लिए बस प्रेम कर ले ।
चाहतों को संकीर्ण कर के,हृदय को उदार कर ले ,
भूलकर चकाचौंध दूनियां,प्रेम का विस्तार कर ले।

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०६ /११ /२०२१
मोबाइल न. – 8757227201

Language: Hindi
6 Likes · 6 Comments · 612 Views
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