एक आदमी आम(गीत)
एक आदमी आम (गीत)
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प्रभु जी हमें बनाना जग में ,एक आदमी आम
(1)
बड़ा आदमी हमें न बनना ,नकली जीवन जीते
अहंकार की यह मदिरा को ,सदा रात – दिन पीते
कई मुखोटे लगा – लगा कर ,रहना इनका काम
प्रभु जी हमें बनाना जग में ,एक आदमी आम
(2)
बड़े आदमी की झूठी मुस्कानें झूठे रोते
घिरे सुरक्षा चक्रों से ,जब भी देखो यह होते
बड़े आदमीपन ने छीनी ,सब मस्ती आराम
प्रभु जी हमें बनाना जग में ,एक आदमी आम
(3)
मामूली इंसान ठीक है , दिल से रोता हँसता
कभी दिखावे के चेहरों के चक्कर में कब फँसता
सुबह सड़क पर जाता- घूमा ,आजादी से शाम
प्रभु जी हमें बनाना जग में ,एक आदमी आम
(4)
जब मनचाहा पानीपूरी ठेले पर जा खा-ली
जब मन चाहा धूप शीत की ,पार्कों में जा पा- ली
मन के मौजी मिले आम – जन को सौ-सौ आयाम
प्रभु जी हमें बनाना जग में ,एक आदमी आम
(5)
छोटा सा घर ,जमा पिटारी में रुपए बस थोड़े
नहीं तिजोरी – भरी गड्डियाँ रबड़ बैंड से जोड़े
छल से रहित जिंदगी ,छोटे लोगों का व्यायाम
प्रभु जी हमें बनाना जग में ,एक आदमी आम
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रचयिता : रवि प्रकाश,. बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451