“एक आग खुद में लगाओ तो”
एक आग खुद में भी लगाओ तो,
अपने अंदर के ‘रावण’ को जलाओ तो,
शहरों को जला के क्या मिलेगा?
अहंकारों को आग लगाओ तो!
हर बार प्रह्लाद क्यों गोद में बैठे?
क्यों हर बार होलिका अग्नि में जले?
हिरणकश्यप तो फ़िर भी मूकदर्शक है,
कभी खुद ब्रह्मा रीत निभाओ तो!
अपने अंदर के रावण को जलाओ तो,
रंगों का मज़हब क्या पूछें!
कोई प्रेम रंग भी बताओ तो?
रंग लाल, हरा, या भगवा हो,
कभी प्रीत भाव से लगाओ तो!
कुछ फासले अब मिटाओ तो,
अपने अंदर कर रावण को जलाओ तो!
-सरफ़राज़