एक आओर ययाति(मैथिली काव्य)
एक आओर ययाति
(मैथिली कविता)
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एक आओर ययाति प्रकट भेल ,
देखलक लोग ई कलियुग में ।
पूत के रहितेऽ धिया अंग देलक ,
लाज हेराएल कलियुग में।
राज पाठ केऽ सुख कतेऽ भोगब ,
तृष्णा मिटल नहिं कलियुग में।
अंतकाल मे प्रबल भेल इच्छा ,
बुद्धि हेरायल कलियुग में।
काल कहलथिन तोरा लऽ जेबउ ,
बहुत जिअ लेलहुँ कलियुग में।
जर्जर देह खाँहिस नहिं मिटलउ ,
कतेक दिन जिअब कलियुग में।
घिघियाहट बापक सुनि सुनि केऽ ,
काल पसीजल एहि कलियुग में।
कहलक काल सुनि तूँ मूरख ,
पूतक अंग लिअ कलियुग में।
पूत,बाप के कहए बजरखसुआ ,
हमहुँ जिअब एहि कलियुग में।
राज पाठ हमरो अछि आयल ,
जीवन अनमोल एहि कलियुग में।
आस-निराश कऽ एहि जीवन में,
राग-द्वेष सहल नहिं कलियुग में।
विषय अनुकूल तेऽ भऽ गेल रागहि ,
ज्यों प्रतिकूल तेऽ द्वेष कलियुग में।
पूतक आस जुनि करहुँ मानव ,
धिया सुकृत करहुँ कलियुग में।
देवी स्वरूपा धिया एहि जग में ,
होइत जेऽ संस्कारित कलियुग में।
सुख सुविधा आओर मोन मनोरथ ,
कखनहुँ पुरत नहिं कलियुग में।
प्राण निष्प्राण श्रीराम बिना अछि ,
जपैय राम सभ कलियुग में ।
ययाति बनि केऽ कतेऽ भोगब ,
जायत तृष्णा नहिं कलियुग में।
काल आबऽ नहिं कखनहुँ सम्मुख ,
हम स्वयं जाय छी मृत्यु मुख में ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १४ /१२/२०२२
पौष,कृष्ण पक्ष,षष्ठी ,रविवार
विक्रम संवत २०७९
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