एक अहम सवाल…?
मर जाती है भूख से वो जब बाजार गर्म न हो,
गर बिक जाए सौदा क्यूँ सुकूँ से खा न पाती वो।
मयस्सर चाँदनी लेकिन अँधेरा जिन्दगी में है,
दरिया_ए_अश्क बहे जो आँखों में क्यूँ सुखा न पाती वो।
उसकी बेबसी ऐसी कि हर इक रोज मरना है,
‘अजनबी’को हर अपनी बेबसी क्यूँ दिखा न पाती वो।
नज़र झुके खरीददारों के दीदार जब सरेआम हो जाय,
रईसों को रईसी का हुनर क्यूँ सिखा न पाती वो।
गद्दे मखमली, हीरे जड़े ,श्रृंगार सोलह पर,
सुहागन बन सँवर खुद को आईना क्यूँ दिखा न पाती वो।