एक अलग पहचान बनाने निकले हैं।
हम खुद को इंसान बनाने निकले हैं।
एक अलग पहचान बनाने निकले हैं।
हर मुश्किल आसान बनाने निकले हैं।
तुम्हें बग़ावत लगे बग़ावत समझो तुम,
हम खुद को इंसान बनाने निकले हैं।।
नफ़रत दहशत धोख़ा ख़ून ख़राबा है,
इस धरती पर फिर क्यों काशी काबा है,
तेरी आदम घातक हट बन जाएगी,
ये सारी दुनिया मरघट बन जाएगी,
तुम्हें सरफिरे लगते हैं जो लोग वही ,
जीने का सामान बनाने निकले हैं।।
बर्फ़ीले तूफ़ानों की औक़ात नहीं ,
हम दीवानों जैसी इनमें बात नहीं ,
कब करने वाले हैं कोई खेद यहाँ ,
भेद दिए हैं हमने बहुत अभेद यहाँ ,
माझी जैसे अपनी धुन में रमे हुए ,
पर्वत को मैदान बनाने निकले हैं।।
फिर लेकर दरबान निकलने वाला है ,
अब शाही फ़रमान निकलने वाला है ,
चांदी का पिंजरा सोने की जंजीरें ,
ऐसी होंगी आज़ादी की तस्वीरें ,
काल कोठरी में उजास के कायल अब
देखो रोशनदान बनाने निकले हैं।।