एक अर्चना
तू है शिल्पी मेरा,
मैं हूँ रचना तेरी,
रूप तेरा ही है मैंने पाया,
मेरी परछाई तू,
मेरा दर्पण भी तू,
क्यों रहा फिर मैं तुझसे पराया,
तुझको देखूं सदा,
खुद के भीतर,
कर्म ही सदा हो मेरी भक्ति,
सच की राहों पर,
जब भी चलूँ मैं,
तेरा विश्वास हो मेरी शक्ति,
धर्म जाती के भेदों से उठकर,
झूठे रीति रिवाजों के फंदों से कटकर,
दे सकूँ हाथ, गिरतों को बढ़कर