एक अबूझ पहेली
मेरी उम्र,
बचपन में भाई की शाम
दोस्तों के साथ मौज मस्ती में कटती
पर हमारी!
पराए घर जो जाना है,
माँ के साथ
घर के काम सीखने में अटकती।
शादी के बाद पति के लिए रविवार,,
एक ही दिन छुट्टी तो मिलती है उसे,
कह, दोस्तों के बीच मटकती
हमारी दोस्तों और मेहमानों की
खातिरदारी में पिसती।
बच्चों की शादी के बाद,,,
बहू अभी नई नवेली है,
शौक पूरे कर लेने दो, में धिसती,
थोड़ा काम ही तो बढा है,
बच्ची है वो,
उसको सम्भालने में फिसलती।
बहू के बच्चे,,,,
बहू तो अभी नादान है,
सुनने में बीतती
अपने बच्चों से अधिक
उनके बच्चों को सहेजती।
सास की चिन्ता –
जब बच्चे कमाने लगे,
वो अकेला हो गया है, सुन,
रिटायर्ड पति के साथ
अपने जीवनभर के
अकेलेपन और थकान के बीच
बुढापे को झिड़कती,
चकित हूँ-
मुझे कब और क्या चाहिए,,,
ये कौन सोचेगा
कौन -सा रविवार मेरे खाते आएगा,
आजतक समझ नहीं सकी,,,
क्या आप बता सकते हैं?
इन्दु झुनझुनवाला