पास जो पैसे नहीं तो, कौन किसका यार
एक अपदान्त गीतिका
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जब यहाँ पे झूठ का ही, है महज बाजार,
कर नहीं देते मेरा तुम, क्यों नहीं संहार।
धन अगर जो पास है फिर, झूठ भी है सत्य,
पास जो पैसे नहीं तो, कौन किसका यार।
नारियों को देवियाँ ही, कह रहे कुछ देव,
किन्तु करते जा रहे हैं, रोज अत्याचार।
हक हमारा मारकर वे, कर रहे हैं राज,
राज के मद में दिखे कब, आंसुओं की धार।
धर्म के भी नाम पर तो, हो रहे हैं कत्ल,
कौन कहता है दया ही, है धरम का सार।
आजकल तो है खुदा भी, मौन क्यों ‘आकाश’,
सत्य का भी साथ देकर, हो रही है हार।
– आकाश महेशपुरी