एक अदना दिल तो था लेकिन मुझे टूटा लगा
अब वही बेहतर बताएगा के उसको क्या लगा
इश्क़ में नुक़्सान मेरा पर मुझे अच्छा लगा
यूँ शिकन आई जबीं पर उसके, मुझको देखकर
वह मुझे फ़िलवक़्त मेरे दर्द का हिस्सा लगा
मैं उसे देता भी क्या था सामने मेरे सवाल
एक अदना दिल तो था लेकिन मुझे टूटा लगा
ख़ुश्बू-ए-बादे सबा क्यूँ जानी पहचानी है आज
सोचता मैं यह, के वह मेरे गले से आ लगा
आस्माँ के चाँद का करता भला क्यूँ इन्तज़ार
जब मेरा ही रू किसी को चाँद के जैसा लगा
मैंने कोशिश की बहुत अपना बनाने की मगर
वाक़ई वह ग़ैर ही था ग़ैर ही से जा लगा
इल्म भी है क्या किसी को यह, के इस ग़ाफ़िल का भी
ज़ीनते महफ़िल की ख़ातिर, जोर जो भी था, लगा
-‘ग़ाफ़िल’