एक अतृप्त आत्मा की पीड़ा
ना जाने कैसी भूख है जो मिटती नहीं ,
यह कैसी प्यास है जो घटती ही नहीं ।
भूख तो फिर भी मिट जाती है भोजन से ,
और प्यास मिट तो जाती है जल पान से ।
मगर एक असंतुष्टि फिर भी बनी रहती है,
कुछ पाने की चाह फिर भी बनी रहती है ।
पाना चाहते है मगर क्या यह तो पता नहीं,
सवाल है बहुत सारे ,जवाब का पता नहीं।
आप पूछते है “आखिर क्या चाहिए तुम्हें ?
हम भी खुद से ही पूछते है क्या चाहिए हमें?
अरमान है बेशुमार जिसकी कोई हद नहीं,
उनतक पहुंचु कैसे इतना तो कद भी नहीं।
ईश्वर के सानिध्य का कुछ सबूत नहीं है ,
और किसी देव की कृपा भाग्य में नहीं है ।
भाग्य की बात तो आप कुछ मत पूछो ,
जिंदगी को भटकाया इसने कितना मत पूछो ।
अब तक तो गम खाकर भूख मिटाते हैं ,
और अपने ही आंसुओं से प्यास मिटाते है।
जब यह भी खत्म हो गए तो क्या होगा?
फिर जी को बहलाने का क्या साधन होगा?
सोचकर अपना अंजाम घबरा जाते है ।
कल्पना कर अपना अंत सहम जाते हैं।
नश्वर देह से तो हमें मुक्ति मिल जाएगी ,
मगर अतृप्त आत्मा की क्या गति होगी ?
फिर वही जन्म जन्म के फेरों का मेल ,
फिर वही संतुष्टि/ असंतुष्टि का सवाल ,
फिर वही जीवन के साथ भाग्य का खेल ।