एक अजन्मी बेटी का दर्द
जीना चाहती थी मैं भी कभी इन तरंगों की तरह,
सुनना चाहती थी कभी मैं भी इन की मधुरता को:
जो खिला देती हैं अपनी तरंगों से मन मयूर को
जब भी आहट होती थी किसी तरंग की ,
मन करता था आनंद लेने को ,दिल को दिलासा देने को !
लगता था मैं महफूज़ हूँ माँ के आँचल में,
न बिगाड़ पायेगा कोई कुछ भी मेरा माँ के साए में !
रहती थी खुश होकर माँ के गर्भ में ,जब सहलाती थी माँ प्यार से,
आया ये कैसा मनहूस दिन ,नहीं था पता आज होगा मेरा आखिरी दिन
माँ जा रही थी अनमनी सी ,पर बेबस थी :
रो रही थी दिल ही दिल में, पर पराधीन थी !
मैं सुन रही थी कोख में माँ के दर्द को ,
पी रही थी माँ के आंसुओं को ,नहीं था पता कैसा दर्द है ?
आई जब एक हथौड़ी मेरे पास तो डर लगने लगा !
सिमटने लगी थी मैं डरके माँ के पेट में ,
पुकार रही थी माँ को जोर जोर से ,बचा लो मुझे तुम आकर इस दर्द से !
नहीं था पता माँ भी बेहोश है ,लाना चाहती थी वो दुनिया में मुझे
पर वो भी बहुत मजबूर है !
छोड़ दी अब हिम्मत मैंने ,कर दिया खुद को राक्षसों के हवाले
क्या कसूर था मेरा ,यही कि मैं एक बेटी हूँ ?
शायद भूल गए ये सभी दुनिया वाले उनकी माँ भी तो किसी की बेटी थी ,
पत्नी भी किसी की बेटी है ,नहीं होंगी जब बेटियां तो किसको माँ बुलाओगे ?
नहीं होगी बहन तो राखी किससे बंधबाओगे ?
मुश्किल नहीं है न ही नामुमकिन है ,इस जीवन में बेटियों की रक्षा करना !
फिर भी बन जाता है क्यूँ खुद ही बहशी बेटी का पालन हार है ?
सच्चाई यही है आज भी एक बेटी की ,जीना है बस सारी उम्र यूँ ही मर मर के !
कब आयेगा वो दिन हकीक़त में, जब बेटियां भी जी पाएंगी खुलकर!
उड़ पाएंगी आसमान में स्वतंत्र पक्षियों की तरह झूमकर !!
बेटियां ही हैं सृष्टि का आधार ,जीवन का सबसे बड़ा उपहार ।
मत मारो कोख में बेटियों को ,वरना आने वाले कल में आँसूं बहाओगे ।
(कैसे कठोर दिल होते हैं वो माँ बाप जो आज भी करते हैं बेटे और बेटियों में दुहांत )
_=========बेटी बचाओ बेटी है तो जहान है वरना दुनिया ही सबकी वीरान है =======
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ