एकीकार
मैं चाहूँ तो भी नहीं
देख सकती तुम्हें
क्योंकि आँखो के आगे
बहुत सारे पर्दे है
मोह के,तर्क के
पक्षपात के
दृष्टिकोण के
अच्छे का ,बुरे का
विश्वास का
इच्छाओं के
आकांक्षाओं का
अपनों का,पराये का,
पसन्द का,नापसन्द कां,
ज्ञान का,अज्ञान का
सभी भ्रम न जाने कब खत्म होगा
जब निर्बाध उस दीवार से पार,
परम तुम्हारा दर्शन और एकीकार होगा।
…………….पूनम कुमारी