एकात्म
एकात्म
सृष्टि के आर्विभाव से ले कर अब तक
सूर्य के उदय से अस्त तक
कितने ही अवतारों की कृपा से
अनुप्राणित मानव
अनेक महामानवों ने समझाया
मनुष्य का उद्गम एक है
मनुष्य की मंजिल एक है
अंश है वह प्रमात्मा का
उसमें अंश अनश्वर आत्मा का।
कविता ने अपनी हर बहर में
अपने हर शब्द में यहीं बताया
अपने हर उन्मान में यही सब सजाया
संगीत के हर सुर में यही गुंजाया
कविता का सबने इस्तेमाल तो किया
पर जो कविता कहती थी
वह नहीं जलाया दिया
अगर दिया जलता
तो अंधकार काहे को पलता
क्यों जलना पड़ता हर एक को
अपने हिस्से की रोशनी के लिये
क्यों मरना पड़ता पल पल
अपनी अपनी उमीद के लिये
क्यों नहीं सीखता मानव
अपने अभ्यास से
अपने इतिहास से।
क्या कभी हल हुई समस्या
फिर क्यों हर रोज होते हैं युद्ध
जबकि आ चुके हैं बुद्ध।
कितनी बार आना होगा बुद्धको
बनो हर कोई बुद्ध
करके आत्मा को शुद्ध
फैलाओ प्रकाश
अपने अपने उजले आकाश के लिये।