एकाकीपन
दुनिया की भागम भाग में रिश्तों की निकटता कहीं खो रही है। पति को पत्नी के लिए, पत्नी को पति के लिए ,और माता-पिता को बच्चों के लिए समय निकालना पड़ता है ,तब सब साथ में मिलकर कुछ क्षणों को आनंदपूर्वक जी पाते हैं ।संयुक्त परिवार सिमटता सिमटता एकल परिवार में सिमट गया है, और एकल परिवार लिविंग रिलेशनशिप और मित्रता के बंधन में सीमित हो रहा है। बिन ब्याही मां बनना,सेरोगेसी आजकल का नया फैशन है, जो लैंगिक समानता का विद्रुप रूप है। आज नव युवा विवाह के बंधनों में बंधे बिना वैवाहिक जीवन, यौन संबंधों का रिश्ता बनाना चाहते हैं। “खाओ पियो और मौज करो “के सिद्धांत का पालन करने वाले युवा समाज के बंधनों को नहीं मानते ।समाज में रहकर लैंगिक समानता और व्यक्तिगत अधिकारों की वकालत करते हैं। बात-बात पर कानून का सहारा लेते हैं, जो कानून समाज में मर्यादा, सामंजस्य स्थापित करने हेतु बनाया गया है, उसकी हंसी उड़ाते हैं।
एकल परिवार कपूर साहब का भी है, वे सफल व्यापारी हैं, किंतु , रिश्तों के व्यापार को वे संभाल नहीं सकते ,क्यों?
क्योंकि कपूर साहब की पत्नी चिकित्सक है, जो निजी तौर पर अपनी पैथ प्रयोगशाला का संचालन करती है ।आज की दुनिया प्रतिस्पर्धा पसंद करती है। जीवन की भागम भाग में यदि अपने को प्रतिस्पर्द्धा में बनाए रखना है, तो ,दूसरे समकालीन प्रतियोगी से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है । मिसेज डॉक्टर कपूर का सारा समय इस प्रतिस्पर्धा में अपनी चमक बनाए रखने में खर्च होता है। प्रातः दस बजे जब वे प्रयोगशाला के लिए निकलती हैं तब रात्रि के दस बजे ही उन्हें विश्राम मिलता है ।
चिकित्सा जगत का व्यवहार भी अजीब है, कभी एक जैसा नहीं रहता। इस प्रतियोगिता में नए-नए चिकित्सक पदार्पण करते हैं और उनकी मानसिकता येन -केन -प्रकारेण धन उपार्जन की होती है। अतः चिकित्सा बाजार का ऊंट किस करवट बैठेगा निश्चित नहीं होता । चिकित्सक ज्यादा कमीशन देते हैं ।डॉक्टर मिसेज कपूर भी कमीशन देने में विश्वास करती हैं ।कभी-कभी दौड़ में बने रहने के लिए महंगे उपहार भी देने होते हैं ,कभी कभार खास चिकित्सकों को सैर सपाटा भी करना पड़ता है, इसका खर्चा मिसेज डॉक्टर कपूर स्वयं उठाती है ।तब इस बाजार में उनकी सेहत व धाक बनी हुई है।
वे अब तक चालीस बसंत देख चुकी हैं, किंतु चेहरे व कद काठी से वह आज भी किसी नवयुवती से कम नहीं है। मिस्टर कपूर उनसे केवल पांच वर्ष बड़े हैं ,अर्थात पैंतालीस वर्षीय युवा हैं।
कपूर पारिवारिक इस भागम भाग में अकेला नहीं है, उनका एकमात्र चश्में चिराग विकास भी है ,जो पंद्रह वर्ष का है। उसे जनपद के एक प्रतिष्ठित विद्यालय में प्रवेश मिला है।उसके पास चमचमाती लग्जरी कार है,ड्राइवर है, धन का कोई अभाव नहीं है। मित्र ,संगी साथी हैं, किंतु उसके जीवन में एक सूनापन है। वह अकेला है। ना कोई भाई ना कोई बहन। मम्मी पापा अपने-अपने व्यवसाय में व्यस्त हैं। दादा दादी को उसके मम्मी पापा पसंद नहीं करते, उनकी सादगी ग्रामीण जीवन शैली उन्हें नहीं भाती ।भौतिक संपन्नता के इस युग में विकास को अपनेपन की तलाश है। जब वह जिद करके ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करता मिसेज कपूर झट से उसकी जिद पूरी कर देती। मिस्टर कपूर कई प्रकार के महंगे उपहार लाकर उसे खुश करने की कोशिश करते, किंतु कभी उसके समीप बैठकर प्यार से दो-चार बातें नहीं की ,उसके मित्रों की बातें, विद्यालय के अनुभव,सब अनछुए पहलू की तरह उसके मन में ही रह जाते। इस एकाकीपन को दूर करने का वह का अवसर वह अक्सर ढूंढता, इस सूनेपन का लाभ उठाने हेतु कुछ लोग अवसर की तलाश में रहते हैं।
अचानक एक दिन विकास के मोबाइल की घंटी बजने लगी लगती है, फोन रिसीव करने पर उसे ओर से किसी लड़की का मीठा स्वर सुनाई देता है ।मैं ..मैं मैना बोल रही हूं। विकास ने प्रथम बार किसी लड़की से बात की। उसे अच्छा लगा। मैना उसकी क्लासमेट थी, मैना बहाना बनाकर घंटो फोन पर बात करती। विकास का आकर्षण उसकी प्रति बढ़ रहा था ।दोनों विद्यालय में एक साथ बैठने लगे ,क्लास रूम में क्लास समाप्त होने के बाद घंटे चैट करते।कभी-कभी कॉफी पीने ,कभी नूडल्स खाने के बहाने एक दूसरे से मिलते। वह घंटे बातें करते।उनकी वार्ता का विषय अधिकतर पारिवारिक जानकारियां जुटाना ,हंसी मजाक करना, और पढ़ाई के संबंध में आने वाली दुश्वारियों पर वार्तालाप करना होता है।
अब विकास का एकाकीपन दूर हो चुका है,किंतु, वह अपने माता-पिता से दूर जा रहा है। वह कोशिश करता कि जब मैना का फोन आए तो उसके पास कोई ना हो। इसके लिए वह अपनी मां से भी झूठ बोलने लगा ,उसने अपनी दुनिया का दायरा मैना तक सीमित कर लिया था।
डॉक्टर मिसेज कपूर ने देखा कि विकास का स्वभाव उसके प्रति परिवर्तित हो रहा है ।अब वह अपनी मां का ध्यान नहीं रखता , उसकी उदासी उसकी खुशी में शामिल नहीं होता , व्यस्तता का बहाना बनाकर हमेशा अपने माता पिता से कन्नी काटता है ।जब कभी मैसेज कपूर ने उससे मिलने की कोशिश की तो वह मैना से आवश्यक वार्ता करने का बहाना बनाकर दूर चला गया।
आज मिस्टर कपूर की विवाह वर्षगांठ है। इस समारोह से भी विकास गायब हो गया। मैसेज कपूर काफी देर तक प्रतीक्षा करती रही किंतु केक काटने के समय तक विकास नही आया। विकास को अब पारिवारिक खुशियां में शामिल होना दिखावा लगने लगा।उसकी विचार श्रृंखला और मनो मस्तिष्क पर मैना का जादू चढ़ने लगा था।
श्रीमती कपूर अपने पुत्र के इस रूखे व्यवहार से अत्यंत चिंतित थी ।जिस पुत्र को उन्होंने जन्म दिया, बचपन से पाला पोसा ,वही अजनबियों जैसा व्यवहार अपने माता-पिता से कर रहा है ।उन्हें अपने पुत्र को खोने का डर सताने लगा। मां की ममता जागी ,उन्होंने विकास को समझाने का बहुत प्रयत्न किया, किंतु विकास मैना को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ ।
मैसेज कपूर भौतिक समृद्धि से गुजर रही थी। उन्हें रिश्तों का खोखलापन सताने लगा ,जिस एकाकीपन से विकास गुजरा था ,उसी एकाकीपन से अब वे गुजर रही हैं।मिस्टर कपूर व्यापार के सिलसिले में अक्सर व्यस्त रहते। उन्हें परिवार से कोई मतलब नहीं था, उनका मंतव्य केवल पैसा कमाना था। अपने को एक बिजनेस टाइकून बनाना है।
विकास और मैना बहुत करीब आ गए हैं ।दोनों ने एक ही इंजीनियरिंग कालेज में अब प्रवेश लिया। दोनों खुश हैं ,दोनों की मंजिल पास आ रही है ।विकास और मैना ने इंजीनियरिंग फाइनल परीक्षा पास की। अब दोनों साथ-साथ लिविंग रिलेशनशिप में रहने लगे ,
मैना ने अपने माता-पिता से विकास के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा । मैना के माता-पिता अंतर्जातीय विवाह हेतु राजी नहीं हुए ।दोनों परिवारों की सोच में बहुत अंतर है।जहां मिसेज कपूर और मिस्टर कपूर के लिए अपने पुत्र की खुशियों से बढ़कर कुछ नहीं है,वही मैना का परिवार मैना की खुशियों के लिए अपनी जाति परंपरा को तिलांजलि देने हेतु तैयार नहीं है । मैना अपने माता-पिता को मनाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही है ,रो-रो कर मैना व उसकी मां का बुरा हाल है । आखिर उनकी क्या हैसियत रह जाएगी एक परजातीय लड़के ने उनकी जाति की लड़की से प्रेम विवाह किया।
अंत में बहुत मान मन्नौवल के पश्चात मैना के माता-पिता विकास के माता-पिता से मिलने को राजी हुए। एक दर्शनीय पूजा स्थल का चुनाव किया गया। वहां दोनों पक्षों ने वार्तालाप किया। मैना के माता-पिता विकास के माता-पिता के व्यवहार से अत्यंत प्रभावित हुऐ ।
आज अंतर्जातीय व्यवस्था समाज में नई परंपरा का अनुकरण कर रही है ।वर वधु की खुशी ,व, हठ के आगे माता-पिता कब तक टिकते, आखिर उन्हें मानना पड़ा की विवाह का मुहूर्त निकलवाने में ही उनकी भलाई है । अन्यथा दोनों परिवार अपने पुत्र -पुत्री से बिछड़ जाएंगे। बालिग होने के उपरांत कानून उन्हें विवाह बंधन में बंधने अधिकार देता है। दोनों परिवारों के मिलने से न केवल विकास का एकाकीपन दूर हुआ ,बल्कि मिसेज कपूर को भी अपना पुत्र ,पुत्रवधू समेत वापस मिल गया।
डॉ. प्रवीण कुमार श्रीवास्तव