एकाकार
“एकाकार”
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एकाकार
हुए है देखो !
कितने सुन्दर ?
वृक्ष विशाल |
खो रही जो ….
प्रीत की थाति !
जला रहे !
उसकी मशाल ||
मनुज-स्नेह भी
गौण हो गया !
ऐसी इनकी
बनी मिशाल ||
जकड़े दोनों
स्नेह-बंधन में !
पाणि-ग्रहण-सा
है संस्कार !
बता रहे ये …..
प्रीत की रीत !
सदा प्रीत की
जय-जयकार ||
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डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”
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