”एकांत”
सुनने में जितना उबाऊ लगता है
उतना भी बुरा नहीं है एकांत
हर एक चीज बहुत साफ नज़र आती है
आवाज़ें शोर नहीं लगती
सब कुछ चिरपरिचित सा लगता है
जो कुछ भी बटोरा है अब तक
सब व्यर्थ है गर आप अपने लिए
कभी कोई एकांत नहीं ढूंढ़ पाए
– विवेक जोशी ”जोश”