एकांतवास
जब दर्द आंँखों से झलकता है,
फर्क कहीं और नहीं पड़ता है,
मुस्कुरा कर चोट दिल पर जो पड़ी,
लबों से बयांँ करते ही नहीं,
खोए-खोए से जो रहते हैं,
पल भर में वह मरते ही नहीं,
सदियों से तपस्या जो करते हैं,
अब जीने से भी डरते हैं।
# बुद्ध प्रकाश ;मौदहा, हमीरपुर।