एकांगी आधुनिकता
जब मैं
पहनता हूं
कोई जींस/टीशर्ट
तो सभी कहते/पूछते हैं
अरे भाई वाह!!
मस्त लग रही है,
कहां से खरीदी है/सिलाई है?
लेकिन
जब मैं
पढ़ता हूं कोई-
नई/डॉयनामिक किताब
तब यह
कोई नहीं पूछता-
अरे कौन-सी है, किसकी है, कहां से ली है
यह भी नहीं कहते कि
अगर पढ़कर हो जाए
तो मुझे देना, पढ़कर जल्द वापस कर दूंगा
अगर कभी
उतावलेपन में
मैंने किसी को दे ही दी
कोई किताब
तो वह-
न तो पढ़ी गई, न ही लौटाई गई
यह कैसी आधुनिकता है,
कैसी बुद्धिजीविता है?
यह खतरनाक
एकांगी-आधुनिकता है.