एकता का पर्व लोहड़ी।
आ, गई जी लोहड़ी फिर से, जश्न को सब तैयार हैं ।
नए वर्ष के प्रथम पर्व से, भरे हुए बाज़ार हैं ।।
चौतरफ़ा है रंगत बिखरी, चहक उठा परिवेश है सारा ।
प्रभा भी नभ से ऐसे छलके, मानो बरसे अमृत धारा ।।
छोड़ो सारे झगड़े पल में, आओ मन के भेद मिटाएँ ।
बढ़े प्यार हर जनमानस में, मिलजुल कर यह पर्व मनाएँ ।।
पूजा बिन ना काम हो दूजा, यह भी ध्यान में रखना है ।
अग्निदेव की कृपा से हमको, दूर अंधेरा करना है ।।
याद है सबको आज भी, दुल्ला भट्टी ने जो किए थे काम ।
नेक इरादे चलो थाम के, याद युगों तक रहेगा नाम ।।
लेकर दुआएँ बड़ों की, अपने संस्कारों को और बढ़ाएँ ।
बढ़े प्यार हर जनमानस में, मिलजुल कर यह पर्व मनाएँ ।।
रहे मिठास, रिश्तों में भी, रौनक़ चेहरों पे छा जाए ।
मीठा रहना खा कर इसको, तिलचौली जो सबको भाय ।।
चले सूर्य भी पुत्र से मिलने, दिवस यह कितना प्यारा है ।
चमक उठेंगे मकर के स्वामी, वाह क्या ख़ूब नज़ारा है ।।
संक्रांति दिवस है अति शुभ होता, प्रेम भाव की ज्योत जलाएँ ।
बढ़े प्यार हर जनमानस में, मिलजुल कर यह पर्व मनाएँ ।।
गच्चक, रेवड़ी संग मूंगफली, बाँटी आज भी जाती है ।
अपनों के संग लोहड़ी में तो, और भी रौनक़ आती है ।।
मक्की रोटी सेहत वाली, साग संग क्या बात है ।
संक्रांति दिवस में दान-पुण्य कर, खिचड़ी खानी साथ है ।।
अबकी सुंदर मुंदरिये में, लोक गीत सब मिलकर गाएँ ।
बढ़े प्यार हर जनमानस में, मिलजुल कर यह पर्व मनाएँ ।।
शिवालिक अवस्थी, धर्मशाला, हि.प्र ।