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7 Oct 2019 · 1 min read

एकता।

अगर यही है तेरी चाहत
तोड़ूँ पर्वत की छाती,
बिजली बन मैं कड़कूँ नभ में
चलूँ चाल भी मदमाती।
हो और शान्ति की अभिलाषा
तो करो नहीं कोई दूजा,
भाई- भाई एक रहें
हो और एकता की पूजा।

एक अगर हम हैं तो
सारी विपदा से टकरा जायें,
बिखरे हैं तो दीन -हीन बन
बेड़ी में जकड़ा जायें।
संग मिले जब फूल सहज ही
एक बनी सुन्दर माला,
बिखरे हुए कुसुम को छेड़े
हठी भ्रमर हो मतवाला।

बिखरा जब भी देश
सिकन्दर, गोरी ने आकर लूटा,
उत्तर – दक्षिण गये
हाथ से पूरब व पश्चिम छूटा।
कटती रही हाथ की ऊँगली
गर्दन पर तलवार चली,
जलियांवाला बाग कहेगा
वीरों की क्यों चिता जली।

एक हुए जब देव, शिवा ने,
मथ सागर, विष पी डाला,
पर्वत उठा लिया ऊँगली पर
नारायण बनकर ग्वाला।
एक रहेंगे, नारा अपना
समय कठिन चाहे जितना,
दुश्मन चाहे जोर लगा लें
उनके हाथों न बिकना।

अनिल मिश्र प्रहरी।

Language: Hindi
349 Views
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