*ऋषि अगस्त्य ने राह सुझाई (कुछ चौपाइयॉं)*
ऋषि अगस्त्य ने राह सुझाई (कुछ चौपाइयॉं)
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1)
ऋषि अगस्त्य ने राह सुझाई।
दंडक-वन की महिमा गाई।।
गोदावरी नदी की धारा।
पंचवटी था मधुर किनारा।।
2)
पंचवटी में कुटी बनाई ।
ठहरे सिया सहित दो भाई। ।
राम लखन को गुर समझाते।
जीव-ब्रह्म का ज्ञान बताते।।
3)
सूर्पणखा राक्षसिनी नारी।
कामुकता की थी वह मारी।।
सीता जी को खाने आई।
हुई नाक की सही कटाई।।
4)
सूर्पणखा के थे दो भाई।
खर-दूषण से हुई लड़ाई।।
खर-दूषण की माया भारी।
राक्षस यह थे मायाचारी।।
5)
इन्हें अमर रहना था आता।
जो मरता जीवित हो जाता। ।
कटा शीश तो धड़ चलता था ।
मायावी कुल यों पलता था।।
6)
खर-दूषण दोनों को मारा।
मायावी माया से हारा।।
आपस में लड़-भिड़कर हारे ।
एक दूसरे को ही मारे।।
7)
आधे सैनिक राम दिखाए ।
अपनों से अपने लड़वाए।।
राक्षस था मारीच कहाता।
माया से मृग बनना आता।।
8)
सोने का मृग मायाधारी ।
भ्रम में पड़ीं सिया बेचारी।।
माया ने यों नाच नचाया ।
मायापति को समझ न आया।।
9)
अग्नि मध्य में सिया छुपाईं।
असली माया से बचवाईं।।
बाहर था प्रतिबिंब रखाया।
लक्ष्मण तक को नहीं बताया।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451