ऋत- गीत
ऋत गीत
क्षेत्रपाल शर्मा:
दिन चौमासे जैसे हैं,
नभ में आवारा बादल
दिन भर करते धमाका चौकड़ी
वातायन जस ओस का मेला,
रूपम बदलें, घड़ी घड़ी
कांस, जवासे फूल गये सब
पितृ पक्ष भी वैसे हैं
खोज रहा मैं मोरपंख,
जमुना जी के पावन तट पर
गया, गया में विष्णु पदी है,
भीड़ लगी है, हर पनघट पर
लोप…, हुए आंखों के तारे,
विस्मय कैसे-कैसे हैं ll
धर्म ध्वजा नित- नित फहरे
सुखिन: ,सर्व मनोरथ काजा
अर्घ्य दे रहा ,मैं पितरों को,
साक्षी कर, ऋतुओं के राजा,
कामायनी सदृश जीवन, बस
स्व से स्वाहा जैसे है ll