ऋतुराज
रिमझिम फुहारों के गुज़रते ही, शीत की लहर का आगमन हुआ।
शरद की बर्फीली हवाओं का, हर नगर व कस्बे तक भ्रमण हुआ।
शीत के ऐसे ज़ुल्म को देखकर, यहाँ फिज़ाओं में बवाल हो गया।
ज़रा उठकर देख तो ऋतुराज, तेरा यौवन उमंग से लाल हो गया।
इस शीत ने अपनी निर्ममता से, जीव की इच्छाएँ सीमित कर दीं।
फिर से गर्म सूर्य को देखने की, सारी संभावनाऍं सीमित कर दीं।
जिस दिन पूरा सूरज दिखा, उस दिन लगा मानो कमाल हो गया।
ज़रा उठकर देख तो ऋतुराज, तेरा यौवन उमंग से लाल हो गया।
शरद ऋतु की सुबह व शाम में, बहुत अधिक अंतर नहीं रहता है।
आँखें खुलीं तो सवेरा, बंद हुईं तो अंधेरा, हर कोई यही कहता है।
ये सूर्योदय है या सूर्यास्त, हर जन के मन में यही सवाल हो गया।
ज़रा उठकर देख तो ऋतुराज, तेरा यौवन उमंग से लाल हो गया।
सैलानी शीत की स्तुति गाते हैं, जबकि कृषक भर्त्सना करता है।
क्योंकि ये एक मन में संतोष भरे, दूसरे मन में संवेदना भरता है।
शरद ऋतु अच्छी है या बुरी, ये प्रश्न एक उलझा ख़्याल हो गया।
ज़रा उठकर देख तो ऋतुराज, तेरा यौवन उमंग से लाल हो गया।
ऋतुऍं प्रकृति के बढ़ने का क्रम, इस बात का भान होना चाहिए।
प्रकृति जीव का जीवन है, तभी यथासंभव सम्मान होना चाहिए।
शरद को खुशी से विदाई मिली, ये तो स्वयं एक मिसाल हो गया।
ज़रा उठकर देख तो ऋतुराज, तेरा यौवन उमंग से लाल हो गया।