ऋतुराज ‘बसंत’
भारतवर्ष के प्रसिद्धी के अनेक कारण है जैसे- साहित्य, संस्कृति, संस्कार, भाषा आदि। भारत को ऋतुओं का देश भी कहा जाता है। भारत अनेकता में एकता का उदहारण प्रस्तुत करता है। वैसे तो हमारे देश में छः ऋतुएँ हैं लेकिन मुख्य रूप से चार का महत्व अधिक है- बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु और शरद ऋतु। वसंत (Spring Season) उत्तर भारत तथा समीपवर्ती देशों की छह ऋतुओं में से एक ऋतु है, जो फरवरी, मार्च और अप्रैल के मध्य इस क्षेत्र में अपना सौंदर्य बिखेरती है। ऐसा माना गया है कि माघ महीने की शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र मास वसंत ऋतु के माने गए हैं। फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला। इस प्रकार हिन्दू पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ वसंत में ही होता है। इन सभी ऋतुओं से देश की प्राकृतिक शोभा में चार चाँद लग जाती है। हमेशा ये ऋतुएँ बदल-बदल कर प्रकृति की श्रृगांर करती हुई इसकी शोभा को बढ़ाती रहती है। सभी ऋतुओं में बसंत ऋतु सबसे निराली है। बसंत ऋतु का स्थान ऋतुओं में सर्वश्रेष्ठ है इसलिए इसे ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है। इस ऋतु के आते ही सर्दी कम होने लगता है, और मौसम सुहावना होने लगता है। पेड़ों में नए-नए पत्ते आने लगते हैं। पशु-पक्षियों, पेड़-पौधे, जन-मानस सभी में जोश, उमंग और उल्लास भर जाते हैं। आम की डालियों पर बैठी कोयल अपने मधुर संगीत से कानों में मिश्री घोलने लगती है। कवि और कलाकार इस ऋतु में अपनी नई-नई कविताएँ रचने लगते हैं। इस मौसम में सूर्य भगवान भी अधिक तीव्र नहीं होते हैं तथा दिन और रात लगभग समान होता है।
एक और मान्यता के अनुसार बसंत ऋतु के स्वागत के लिए माघ महीने के पांचवे दिन एक जश्न मनाया जाता है। जिसमें विष्णु भगवान और कामदेव की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं में बसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है। कवि जयदेव ने बसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कहा है कि रूप और सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार मिलते ही प्रकृति झूम उठती है। इस ऋतु में वृक्ष नव पल्लव का पालना बिछाती है, खिले हुए नये फूल प्रकृति के सुन्दर वस्त्र के समान सुशोभित होते हैं और हल्के पवन का झोंका शरीर को कोमल सुखद झुला पर झुलाती है तथा कोयल अपने मधुर गीत सुनाकर मन को बहलाती है।
डारि द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के, सुमन झंगूला सौहै,
तन छवि भारी दै पवन झुलावै, केकी कीर बतरावै देव।
इस तरह से प्रकृति के सौंदर्य का सुखद आनन्द सिर्फ बसंत ऋतु में ही मिल पाता है।
भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है- “ऋतुओं में मैं बसंत हूँ”। भगवान विष्णु जी के कहने पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना किया था। ब्रह्मा जी ने समस्त तत्वों जैसे- हवा, पानी, पेड़-पौधे, जीव-जंतु और खास तौर पर मनुष्य योनी की रचना किया था लेकिन वे इस रचना से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि चारों तरफ मौन छाया हुआ था। तभी विष्णु जी से अनुमति लेकर ब्रह्मा जी ने अपनी कमंडल से जल निकालकर पृथ्वी पर छिड़क दिया। जलकण के गीरते ही पृथ्वी पर कम्पन के साथ माँ सरस्वती प्रकट हुईं। उनके एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में वर मुद्रा एवं अन्य में पुस्तक आदि थे। ब्रह्मा जी ने सरस्वती देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही सरस्वती देवी ने वीणा का मधुरनाद आरम्भ किया वैसे ही संसार के समस्त प्राणियों और जीव-जंतुओं को वाणी मिल गई। जलधारा में कोलाहल और पवन में सरसराहट होने लगी। तभी ब्रह्म देव ने देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। उसी समय से बसंत पंचमी को माँ सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में पर्व मनाया जाता है।
पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण भगवान ने माँ सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन आपकी भी आराधना की जाएगी। तभी से उतर भारत के कई हिस्सों में बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा होने लगी। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में बसंत का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है।
बसंत ऋतु में कई पर्व आते है जैसे- बसंत पंचमी (सरस्वती पूजा) महाशिवरात्रि, होली आदि। इस ऋतु में फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में सरसों के फूल सोना जैसे चमकने लगते हैं। गेहूं और जौ की बालियाँ खिलने लगती हैं और रंग-बिरंगी तितलियाँ फूलों पर मंडराने लगती हैं। बसंत का उत्सव प्रकृति का उत्सव है। हमेशा सुन्दर लगने वाली प्रकृति बसंत ऋतु में अपनी सोलह कलाओं के साथ खिल उठती है। यौवन हमारे जीवन का बसंत है तो बसंत हमारी सृष्टि का यौवन है।
जय हिंद