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10 Feb 2022 · 1 min read

ऋतुराज बसंत

फ़िज़ा में आये जब सुहाना तरंग
फूली हुई सर्सों से खेत दिखे पिला रंग
खिले फुलों से बाग लगे रंग बिरंग
मुदित मन में उठने लगे प्रीत की उमंग
पेड़ों में दिखे किसलय प्रकृति की नव सृजन के संग
पपीहे गायें- ‘पी-कहाँ’ की मधुर स्वर
जौ ज्‍वार गेहूं की फसलें में जब हो लहर
दिखे चहकते परिंदों की वृंद
करे कोइली कू.. कू.. की गूँज
मंजर से लदे फलों के राजा आम, पेड़ लगे जैसे पहने हो परिधान
भँवरों की गुनगुन से कर्णप्रिय में मिले स्नेह संवेदन की रुझान
तन मन में होने लगे मधुर आलिंगन का ज्ञान
‘पवन’ की स्पंदन, नवल कंठ से नव गति में
नव लय से मिले हो ताल छंद
रसरंग से ड़ुबा मन में ख़ुशीयाँ मिले जब अनंत
समझो आ गई है ऋतुओं का राजा बसंत।।

प्रस्तुति:
पवन ठाकुर “बमबम”
गुरुग्राम!
17.02.2021

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 523 Views
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