ऋतुराज बसंत
फ़िज़ा में आये जब सुहाना तरंग
फूली हुई सर्सों से खेत दिखे पिला रंग
खिले फुलों से बाग लगे रंग बिरंग
मुदित मन में उठने लगे प्रीत की उमंग
पेड़ों में दिखे किसलय प्रकृति की नव सृजन के संग
पपीहे गायें- ‘पी-कहाँ’ की मधुर स्वर
जौ ज्वार गेहूं की फसलें में जब हो लहर
दिखे चहकते परिंदों की वृंद
करे कोइली कू.. कू.. की गूँज
मंजर से लदे फलों के राजा आम, पेड़ लगे जैसे पहने हो परिधान
भँवरों की गुनगुन से कर्णप्रिय में मिले स्नेह संवेदन की रुझान
तन मन में होने लगे मधुर आलिंगन का ज्ञान
‘पवन’ की स्पंदन, नवल कंठ से नव गति में
नव लय से मिले हो ताल छंद
रसरंग से ड़ुबा मन में ख़ुशीयाँ मिले जब अनंत
समझो आ गई है ऋतुओं का राजा बसंत।।
प्रस्तुति:
पवन ठाकुर “बमबम”
गुरुग्राम!
17.02.2021