ऋतुराज बसंत
प्रकृति की मनोरम छटा देख
व्याकुल मन हर्षाया
चहुँ ओर फैली हरियाली
शाखाओं पे कोयल बोली
पीत वर्ण की चूनर में
धरा सजी सुनहरी
अन्तर्मन में जगी आशा
ऋतुराज बसंत है आया
भानु रश्मि बिखरे धरा तक
मानो युग में नव राह दर्शाती
नभ से हटी ओस की चादर
नवयुग अभ्युदय का आह्वान करती
रंग बिरंगे कुसुम मन्द मन्द मुस्कान लिए
जीवन का हर बिम्ब दिखाते
आशाओं का वेग है लाया
ऋतुराज बसंत है आया