ऋतुराज (घनाक्षरी )
-(घनाक्षरी)
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हरियाली छा रही है,धरा इठला रही है
मदमस्त आम्र कुंज ,कोयलिया गा रही है
बासन्ती बयार चली,झूम रही कली- कली
संदली बही है हवा ,सुख अति पा रही है।।
फूल खिले,मौन हिले,खुशियों को ठाँव मिले
कलियाँ नवीन देखो,घुँघटा हटा रही हैं।।
प्रीत से पलाश पगे,पीर ,पोर- पोर जगे
विरहा की दाह मन,को भी दहका रही है।।
कली खिली कचनार,हर्षित हरसिंगार
टेसू -टेसू हुआ मन,मानिनी लजा रही है।।
भावना भरी सुगंध,सुरभि से अनुबन्ध
रेशा -रेशा ,रोम -रोम,तन हुलसा रही है।।
भ्रमित भ्रमर हुये,मन प्रमुदित हुये
सेना ऋतुराज की ज्यों,दल संग आ रही है ।।
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डॉ .रागिनी स्वर्णकार (शर्मा )
इंदौर