ऋतुक राजा कोना भेला बसंत
ऋतुक राजा कोना भेला बसंत?
हे यो…
फरछिआएल मेघ, हरियाएल खेत
वायुमंडल सँ हटि गेलै रेत
नभ मे टिम-टिम करऽ तारा
ठिठुरन सँ भेटल छुटकारा
सर्दी परि गेल कमजोर
बढ़़ल चान मे इजोर
दिनकरक भेल मुँहजोर
उमंग सँ पुलकित भेलौं पोरे-पोर।।
रौदक गरमाहट मे अएलऽ मिठगर तरंग
फुर फुर करै चंचल तितली रंग-बिरंग
दन दन करैत मन मे उठल उमंग
नव स्फूर्ति नव चेतनाक संग।।
चहकल खग, कूकल कोइली
कर्णप्रिय स्वर लागल मधुर
कुहूकिनिक बोली
गुन-गुन भंवराइत- कलिक ठोर खोटि रहल भौंरा
सन सन हृदय केँ छू रहल पवनक हिलोरा।।
लह लह करैत सोना सन सरिसो लहलहाइत
मज्जर सँ लदि गेल आमक डारि
प्रकृतिक रूपसौंदर्य चहुँ दिस देखाइ
चित्त मे उठल हर्षक उजाहि।।
गाछ-वृक्ष, लत्ती- फत्ती मे भेलई तनक
पशु-पक्षी, चुट्टी-पिपरी मे उठलई झनक
हे यौ.. सौंसे जेना गूँजै पायलक छनक
आ चूड़ीक होइछ जेना खनक।।
भोर दुपहरिया साँझ राति
जन जन गावैथ उन्माद्क पराति
वातावरण मे फैलल कुसुमक महक
ऋतुराज बसंत लऽ कऽ आएल मनभावन सनक।।
प्रस्तुति:
पवन ठाकुर “बमबम”
गुरुग्राम!!
7/2/2022