ऊषारानी
ऊषारानी ओस भरी चादर लाई।
धीरे-धीरे धूप खिली रौनक आई।।
पूर्वाओं ने बादल को सोमलता दी।
बूंदों ने वातायन को शीतलता दी।।
ठंडी-ठंडी तेज हवाएँ चलती हैं।
बूढ़ों को वो तीर सरीखी चुभती हैं।।
भीना-भीना मौसम मध्यान्ह अजूबा ।
संध्या ने शृंगार किया सूरज डूबा।।
जगदीश शर्मा सहज