*ऊपर से जो दीख रहा है, कब उसमें सच्चाई है (हिंदी गजल)*
ऊपर से जो दीख रहा है, कब उसमें सच्चाई है (हिंदी गजल)
______________________
1)
ऊपर से जो दीख रहा है, कब उसमें सच्चाई है
पर्वत को देखो सॅंभाल कर, नीचे गहरी खाई है
2)
कोर्ट-कचहरी के चक्कर में, भले आदमी फॅंस जाते
पाक-साफ बाहर आता है, वह जिसमें चतुराई है
3)
परेशान हो रहा आदमी, सत्ता के चौधरियों से
साधुवाद का पात्र सत्य की, जिसने ज्योति जलाई है
4)
चले मुकदमे उन पर सौ-सौ, झूठे कानूनों द्वारा
सच वालों के हिस्से ही में, विष की प्याली आई है
5)
दो दिन की यह फटकारें हैं, दो दिन यह उपहास-भरे
साबित होंगे गलत जिन्होंने, सच की हॅंसी उड़ाई है
————————————–
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451