ऊपर बने रिश्ते
कुछ बात अभी है बाक़ी प्रिये तुमसे मैं कह नहीं पाता हूँ।
कहने को अपनी वो बात प्रिये मैं रोज़ तेरे घर जाता हूँ।।
कहने के मौक़े बहुत मिले हर मौक़े को मैंने गँवा दिया।
तुझे देने को फूल जो लाया था रख कर किताब में सुखा दिया।।
तू रोज़ सँवर अपने घर से कॉलेज के लिये जब जाती है।
रोज़ निहारूँ मैं बैठा खिड़की में क्यों देख नहीं तू पाती है।।
मेरे दिल में बस तू ही तू है यह कैसे तुझे मैं बतलाऊँ।
तुझ बिन मेरी क्या हालत है तुझ तक मैं कैसे पहुँचाऊँ।।
अब मैंने अपने दिल के तारों को तेरे ही दिल से जोड़ दिया।
तेरे घर का पता तेरे फोटो संग अपने मात पिता पे छोड़ दिया।।
कल मात पिता मेरा रिश्ता लेकर अब तेरे घर पर जाएँगे।
बिन मिले ही अब एक दूजे से हम दोनों के रिश्ते भी जुड़ जाएँगें।।
कहे विजय बिजनौरी दिल से ज़्यादा उसके ही रिश्ते चलते है।
दिल के रिश्ते चाहें ना भी मिलें ऊपर बने रिश्ते हमेशा मिलते हैं।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी।