ऊंची शिखर की उड़ान
ये जिंदगी समग्र रूप से
कबाहतों से ही है भरी
यह अनुपमेय जिधर
प्रत्येक जन, मर्त्य को
हयात में आती दुश्वारें
ये विघ्नें जब तक तभी
यह अभूतपूर्व ज़िंदगी
दुरूहें अंत हयात अंत
बहुधा ही जिंदगानी में
जिन्हें मिलती विपुल गूढ़े
अमूमन वही मनुष्य यहां
पाते ऊंची शिखर भव में |
ये निराली सी हयात मे
जिन्हें न मिलती सहारा
वो अपने जहद, क्लांति,
उद्यम और सूझ बूझ से
बढ़ते नित्य, सतत अग्रे
अग्रे बढ़ने के संग से ही
उन्हें कई रीति, ढंग की
उद्विग्नताओं का सामना
करना पड़ता इस भव मे
जो निज रौंद दिया इन्हें
उन्हें ही अद्वितीया जग में
मिलती ऊंची शिखर यहां ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार