उड़ान
उड़ते हुए पक्षियों के साथ
मैं अपना आसमान ढुंढती हूँ।
भेड़-चाल की भीड़ से अलग
मैं अपना स्वप्न ढुंढती हूँ ।
लोग सवाल करे – संदेह करे
या व्यंग्य से लहुलूहान करे
मैं अपनी रोशनी ढुंढती हूँ ।
खिड़की के बाहर
दहलीज के उसपार
मैं अपना मकाम ढुंढती हूँ ।
कोई समझे या ना समझे
कोई सुने या ना सुने
मैं बेपरवाह जींदगी जीना चाहती हूँ ।
ब्रह्माण्ड की खुली हवा में
मैं सांस लेना चाहती हूँ ।
महसुस करके देख सको
या सुंघ करके जान सको
ये आजादी की खुशबू है
जो आसमां मे तैरती है
मैं ये आसमां पार करना चाहती हूँ ।
उड़ते हुए पक्षियों के साथ
मैं अपना आसमान ढुंढती हूँ ।
~रश्मि