*”उड़ता सा मच्छर”*
“उड़ता सा मच्छर”
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सुबह सबेरे इधर उधर ताक झांक कर घूमता।
डंक मारने खून चूसकर अपनी प्यास बुझाता।
साँझ ढले जब अंधियारे में,घर पर रेलमपेल घुस जाता।
भुन भुन कर उड़ता फिरता,कानों में संगीत सुनाता।
डंक मारकर खून चूस लेता ,जैसे सुई की नोंक चुभाता।
मच्छर के डर से अगरबत्ती जलाते ,
धुँआ करते दवाइयों का छिड़काव करते,
फिर भी मच्छर नही भागता।
जतन कर लिए सारे उपकरण ,फिर भी ये अमृत तुल्य है बन जाता ।
नई बीमारियां डेंगू , चिकनगुनिया ,अबोला बुखार फैलाता।
उड़ता सा मच्छर मंडराता ,बिंदास घूमता जहरीला पदार्थ छोड़ जाता।
रोगी व्यक्ति को निढाल बना ,बीमारी फैला कमजोर बनाता।
गंदे पानी नालियों में डेरा जमाए ,ढेरों लार्वा आबादी बढ़ाता।
खून पीकर गाढ़ा खून जहरीला डंक मार शरीर में दे जाता।
उड़ता सा मच्छर दिन हो या रात में ,सुकून चैन छीन ले जाता।
शशिकला व्यास ?