उहाफोह
गाँव की एक सोच
जब पहली बार
घर से बाहर निकली
तो
उसकी मुलाकात, शहर मे
खड़ी कई सोचो से हुई।
कुछ से उसने दोस्ती करली
कुछ से बस तालमेल बैठा
और कुछ को अपनाने को
दिल गवारा नही किया,
पर बरसों बीतने के बाद भी
वो पूरी तरह अपने आपको
जोड़ नही पाई।
एक गाँव अब भी
उसकी उंगली पकड़े हुआ था।
फिर जब वो लौटी
अपनी खुली हवा और
मिट्टी की खुशबू तलाशने,
कुछ पल के लिए।
तो बातों बातों मे
किसी ने उसे
जता ही दिया
कि वो शहर
की हो चुकी है।
अब वो एक दोराहे
पर खड़ी
खुद से बातें किये
जा रही है।
हाथों में दबी मिट्टी
पर उसकी पकड़
कभी सख्त तो
कभी ढीली पड़ती
जा रही थी।