उस रात
उस रात
तुमने लिखा था
उस रात
खींचकर मेरा हाथ
बना उंगली कलम से
प्यार नाम तुमने
फ़ासला था हममें
उस रात
चारों ओर नीरवता
बेसुधर सो रही थी।
तारिकाऐं ही जानती
दशा मेरी दिल की
उस रात
मैं तुम्हारे पास होकर
दूर तुमसे जा रही थी
अधजगा सा अलसाया
अधसोया हुआ सा मान
उस रात
रात तुमने खींच कर
मुझे अपनी ओर फिर
से प्रस्ताव लिखा था
साथ निभाने का जीवन
उस रात
बिजली छूई तनमन को
सहसा जग कर देखा मैं
इस करवट पड़ी थी तुम
कि आँसू चुप बह रहे थे
उस रात
जला दूँ उस संसार को
प्यार जो कायरता दिखाता
पता उस समय क्या कर
और ना कर गुजरती मैं
उस रात
प्रात ही की ओर को
हमेशा है रात चलती
उजाले में अंधेरा डूबता
शहर ही पूरा कि सारा
उस रात
बदलता कौन ऐसी
एक नया चेहरा सा
लगा तुमने लिया था
निशा का अद्भुत स्वप्न
उस रात
मेरा पर ग़ज़ब का था
किया अधिकार तुमने।
और उतनी ही दूरियाँ
पर आज तक अन्तिम
सौ बार मुड करके भी
न आये फिर कभी हम
उस रात
लौटा चाँद ना फिर कभी
और अपनी वेदना मैं
आँखों की भाषा स्वयं
खुद मुझमें बोलती हैं?