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19 Jan 2018 · 1 min read

*उस पार हमें *

अपनी किश्ती को ले जाने दो तुम ,उस पार हमें।
आ गया है गुजर के जाना,अपनी रफ़्तार पे हमें।।

जिकर उन फितरतों का किया है बार बार तुमसे
जनाजा खासियतों का दिया है तुमने हर बार हमें।।

उल्फतें बांटना ही हुँनर है तुम्हारा ज़मी आसमाँ में
जाना लाजिमी है ना बताना वो क्यों, सरकार हमें।।

हमारी मिटटी को तुम ना अब मिटटी मान के चलो
जानिये ना जनाव बंजर ज़मीं का खरपतवार हमें ।।

तुम्हारी आँखों से छलकती है ख़ुमार ,रात देर की
हैं वो शामें नशा ख़मो की नापसन्द,वो दरबार हमें।।

जायज लगता है हमें ‘साहब’फैसला वो तयशुदा ही
जाने दो हमें उक्फ़ की तरफ,है वही वो दमदार हमें।।

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